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गाँव / राजकिशोर सिंह

अब रहते हैं
गाँव के दलानों पर बैठे
एक साथ
बच्चे बूढ़े और जवान
डरे हुए, सहमे हुए
लगता है
उनके उड़े हुए होश हैं
बिल्कुल ऽामोश हैं
कानों कान पफुसपफुसाहट है
सबों में अकुलाहट है
महसूस रहे हैं
आज कोई होगा आहत
कई लोग होंगे मर्माहत
कभी इसका अîóा
बनती मछली बाड़ी
कभी ऽेत की आड़ी
कभी ऽर पतवारी

ऽेतों में मजदूर पर
चली आज गोली
क्या लेंगें भूऽे मजदूर
अब अपनी मजदूरी
वे महसूस रहे हैं
ऽून की होली
कुछ लोग
भाग रहे लेकर लाश
कुछ लोग
जा रहे पुलिस के पास
कहीं रोने की आवाज है
कहीं गोली बंदूक का साज है
कैसा मुऽिया सरपंच की छाँव है
आजकल यही अब गाँव है।