सुबह होती है
और गायें खूँटों पर बन्धी रम्भाती हैं और चारा माँगतीं हैं
गायें दिन-दिन भर चरवाहे के साथ चरने जातीं हैं
और शाम को लौट आती हैं अपने खूँटे पर
और रम्भाती हैं ।
दुधारू गायें दुही जाती हैं और पूजी जाती हैं ।
गायें मुँह उठाए देखती हैं रास्तों की तरफ
मनुष्यों को गुज़रते हुए देखती हैं गायें
गायों ने देखा है कितने-कितने मनुष्यों को
कितनी-कितनी बार गुज़रते हुए
गायों ने देखा है युद्ध नायकों और सैनिकों को
कितनी-कितनी बार गुज़रते हुए
गायों की एक झपकी में समय का
पूरा लश्कर गुज़र जाता है
चुपचाप ।
गायें सानी खाती रहती हैं
और मध्यप्रदेश में एक मुसलमान
गोकशी के जुर्म में मार दिया जाता है !
गायों के गले में बन्धी घण्टियाँ बजती हैं
गायें सुनती हैं राजस्थान में
गोकशी के जुर्म में मारे गए एक मुसलमान के बारे में
गायें अपनी पूँछ से मच्छरों को हाँकती हैं
अपने खुर पटकती हैं
पिटती हैं कोई खाने की चीज़ झपटते हुए बाज़ारों में
मण्डियों में अपने पुट्ठों पर ज़ख्म लिए
फिरती हैं गायें
बूढ़ी गायें अपने डाँगर शरीर लिए धीरे-धीरे चलती हैं
कभी कूड़े के ढेर में खाने की कोई चीज़ तलाशती हुई
कभी दीवार में देह रगड़ती हुई ।
गायें सुनती हैं एक मुसलमान की सार्वजनिक हत्या की ख़बर
गायें अपनी नान्द में मुँह घुसाये चारा खाती हैं
बैठ कर पगुराती हैं ।
गायें गायों से मनुष्यों के बारे में नहीं पूछतीं
गायें गायों से मुसलमानों के बारे में नहीं पूछतीं
गायें मनुष्यों से मनुष्यों के बारे में कोई सवाल नहीं करतीं
बस, एक दिन गायें
स्वयँ उठकर चली जाती हैं
बूचड़खानों की तरफ़ ...
(रचनाकाल : 2017, दिल्ली)