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गीत-2 / दयानन्द पाण्डेय

तिनका-तिनका डूब गया
अफवाही बाढ़ में
इस लिए मेंहदी नहीं रचेंगी
भौजी भरे अषाढ़ में

दीवारों की देह हो गई
सारी काली-काली
हमरो गांव में आ गई
अब की दुई-चार दुनाली
किसी गरीब को फिर मारा है
रोटी, सब्जी, दाल ने

पीपल के पातों पर इसी लिए
अब की नहीं बही पुरवाई
चुप-चुप सहमी-सहमी है
सगरो गांव की अमराई
किसी ऊंट को फिर मारा है
मुहावरे वाले पहाड़ ने

[1979]