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गीत / नरेन्द्र शर्मा

बाजे, बाजे मंजुल नूपुर!
गूँजा सूना मन-अन्तःपुर!
बाजे, बाजे मंजुल नूपुर!

खुला युगों से बन्द द्वार फिर,
छवि जो केवल रही स्वप्न चिर,
मंद चरण उतरी मन-मन्दिर!
जागे प्रतनु इन्दु प्रेमांकुर!
बाजे, बाजे मंजुल नूपुर!

स्मिति ज्यों जपाकुसुम की कलियाँ,
विद्युत, चुम्बित पुलकावलियाँ!
निखिल ज्योति पी रहीं पुतलियाँ!
लहरें चरण चूमने आतुर!
बाजे, बाजे मंजुल नूपुर!

कौन आज मेरे मन रमता?
पलक मुँदे, खोई चेतनता!
तार तार प्राणों का तनता!
मेरे रोम-रंध्र वंशी-सुर!
बाजे, बाजे मंजुल नूपुर!

यह केवल ध्वनि नहीं श्रवन को!
मुँदे पलक, खुल रहे नयन दो!
कैसे ग्रहण करूँ इस धन को—
जर्जर झोली-सा मेरा उर!
बाजे, बाजे मंजुल नूपुर!