बरसि गेलै बदरा मोरे अंगना
कि बनी गेलै अंगना गंगा-जमुना।
रसें-रसें बरसै रसलॅ बुन्दरिया,
तीती गेलै लॅत-गात भिजलै चुनरिया,
बिसरि गेलै सुरता उगलै सपना।
रोपलॅ जुआय गेलै नेनुआ अँचरबा,
रही-रही बिरथा फड़कै अँचरबा
अटकि गेलै कहवाँ पापी नैना।
बिजली चमकि गेलै भागो चमकलै,
आहट सुनथैं चेहरा दमकलै,
उमगि गेलै सजनी उमगि गेलै सजना।