Last modified on 2 मार्च 2011, at 17:32

गुंजन / चन्द्रकुंवर बर्त्वाल

गुंजन (कविता का अंश)

रोवेगी कवि के चुम्बन से,
अब सानन्द हिमानी।
फूट उठेगी अब गिरि- गिरि के,
उर की उन्मद वाणी।
(गुंजन कविता से )