Last modified on 15 नवम्बर 2013, at 19:44

गुलामगिरी / अनुज लुगुन

गुलाम खरीद रहे हैं
चावल सौ रूपये किलो
तेल सौ रूपये किलो
प्याज सौ रूपये किलो
टमाटर अस्सी रूपये किलो
आलू पच्चास रूपये किलो
कपड़ा हजार रूपये जोड़े
खपड़ा सौ रूपये जोड़े
स्कूल फीस पांच हजार रूपये प्रति
अस्पताल फीस पांच हजार रूपये प्रति
जो नहीं खरीद सक रहे हैं वे मर रहे हैं ,

मालिक बाजार में खड़ा है
हँस रहा है -
टमाटर अस्सी रूपये किलो ..?
हँसता है ,कहता है –
‘कोल्ड स्टोरेज में रखवा लो’
आलू ,प्याज,दाल,चावल,..सड़ रहा है.?
हँसता है ,कहता है-
‘कुत्ते को दे दो .!’
गुलाम ही तो हैं
सब्जी खरीदने वाले
मोल भाव करने वाले ..?
कीमत चुकाने वाले ..?
चुप रहने वाले .?

मेरा हम-उम्र राजकुमार था
राजा हो गया ,मालिक हो गया
मेरा पड़ोसी लोहार था
सांसद हो गया,मालिक हो गया
मेरा भाई मेरे साथ
कचरा ढोता था
अफ़सर हो गया ,मालिक हो गया

एक मैं था –
किसान था, गुलाम हो गया
मजदूर था, गुलाम हो गया
बेरोजगार था, गुलाम हो गया
क्लर्क था, गुलाम हो गया
शिक्षक था, गुलाम हो गया
सिपाही था, गुलाम हो गया
मैं एक देश था
अपने ही देश में गुलाम हो गया

कुछ गुलाम जिन्होंने
आजादी का मतलब जान लिया है
वे विद्रोही हो गये हैं
वे बगावत पर उतर आए हैं
वे छापामारी कर रहे हैं
वे मारे जा रहे हैं
कुछ गुलाम उन्हें मारने में
मालिक का सहयोग कर रहे हैं

गुलाम हैं,गुलामगिरी को
जिन्दा किये हुए हैं

कुछ देर में गुलाम
मालिक के कहने पर
सड़कों पर आयेंगे वोट डालेंगे
और जश्न मनाएंगे -
“लोकतंत्र..लोकतंत्र..लोकतंत्र ..”