खुलने लगेगा जब
अँधेरे के जिस्म का पोर-पोर
चटक उठेगी दर्द की हर कली,
तब सूनी आँखों में उतर आएगा
यादों का सैलाब
और दूर तक गूँजती चली जाएगी
मेरे अंतकरण की टीस...
शायद कोई गूँज तुम्हें
मेरे दर्द का अहसास दिला
मुझ तक ले आए!
खुलने लगेगा जब
अँधेरे के जिस्म का पोर-पोर
चटक उठेगी दर्द की हर कली,
तब सूनी आँखों में उतर आएगा
यादों का सैलाब
और दूर तक गूँजती चली जाएगी
मेरे अंतकरण की टीस...
शायद कोई गूँज तुम्हें
मेरे दर्द का अहसास दिला
मुझ तक ले आए!