गोकुल की गैल, गैल गैल ग्वालिन की,
गोरस कैं काज लाज-बस कै बहाइबो।
कहै 'रतनाकर' रिझाइबो नवेलिनि को,
गाइबो गवाइबो और नाचिबो नचाइबो॥
कीबो स्रमहार मनुहार कै विविध बिधि,
मोहिनी मृदुल मंजु बाँसुरी बजाइबो।
ऊधो सुख-संपति-समाज ब्रज मंडल के,
भूले न भूलैं, भूलैं हमकौं भुलाइबो॥