♦ रचनाकार: अज्ञात
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गोरी के जोबना हुमकन लगे,
जैसे हिरनियों के सींग ।
मूरख जाने खता फुनगुनू,
वे तो बाँट लगावे नीम ।
भावार्थ
--'गोरी के उरोज उभरने लगे,
हिरनी के सींगों समान
मूर्ख उन्हें फोड़े-फुन्सी समझ रहा है
और वह उन पर नीम के पत्ते रगड़ कर लगा रहा है'