गोवा हमारा हरा-भरा
सारे कवि कभी न कभी यहाँ के समुद्र-तटों पर
चकल्लस कर ही आते हैं
हालाँकि वे इसके बारे में लिखते नहीं
क्यों नहीं लिखते
क्योंकि वे उन ग़रीबों के बारे में लिखते हैं
जिनके नसीब में शौक से और मस्ती करने
गोवा जाना नहीं लिखा
जिनके पास गोवा की सुन्दरता बटोरने
और दोस्तों पर उसे न्योछावर करने वाले सेलफ़ोन नहीं हैं
मैं भी उन्हें क्या बताऊँ उस स्वर्ग के बारे में
गोअन शराब और खाने के बारे में
बेघर बेज़मीन खेत मज़दूर
जो करमी, सत्तू और कन्द-मूल पर ज़िन्दा हैं
क्या करेंगे गोवन बीयर और फ़ेनी के बारे में जानकर
घूमकर तो मैं भी आ गया हूँ गोवा
गोवा हमारी कविता में चोर, छुपे खजाने
और हमारी रूग्ण ग्रन्थि की तरह ही दाख़िल हो सकता है ।