Last modified on 15 जून 2013, at 06:27

घड़ी / बसंत त्रिपाठी

घड़ी टिक् टिक् समय बजाती है
समय बेआवाज नहीं बीतता
एक घड़ी रुकी कि
दूजे के दिल में धड़कता है

समय हौले-हौले
पाँव बढ़ाता है