(अ) सुबह-सुबह
हँसती है घास
जागती है
ओस
या
अम्बर की प्यास
(आ) तिनके की नोक पर
है धरती
अशेष फणों पर
स्थित हैँ
कितनी धरतियाँ
(इ) घास
किसी बच्चे की मुस्कान-सी
खिल आती है
कहीं भी, कभी भी
किसी ऋतु की अपेक्षा के बिना
वह उपेक्षा का उपहास करती है
(ई) -चट्टान के सीने पर अपनी अंगुलियाँ सहलाती हुई वह बैठ जाती है उसकी गोद में
अतीत को हरा करती हुई
स्मृतियों-सी घास
(उ) -लहराती है
छू लेती है आसमान
आसमान छूता है
उसके पांव
(ऊ) -वह उग आती है
इतिहास की दीवारों पर
वर्तमान के चेहरे पर भी
भर देती है उन्मुक्त हंसी-सी
धरती की झुर्रियों में
उगी हूई लाड़ली-घास
उसके बुढ़ापे का सहारा
सबसे बड़ी
सबसे छोटी बेटी
पुराणीयुवति-सी।