घुसपैठिया / गुलशन मधुर

ऐमेज़ॉन के वर्षावनों में भी
सघन आच्छादनों के
घनघोर अंधेरों में
रास्ता ढूंढ ही लेती है
सूरज की
जीवट भरी
कोई इक्का-दुक्का
प्रखर किरण

बंद दरवाज़ों और खिड़कियों वाले
क़िलेनुमा मकानों के भी
कपाटों की झिर्रियों से
झांका करती है
रोशनी की
कैसी भी कृशकाय सही
लेकिन भय से अनजान
कोई विद्रोही लकीर

कुछ ऐसा ही
ग़ज़ब अक्खड़मिज़ाज होता है
सत्ता के
झूठ के
और संशय के
निबिड़ तमस को भी
देर-सबेर
अंदर तक भेद देने वाला
एक मुंहज़ोर घुसपैठिया
सत्य का
दुस्साहसी, अतिक्रमी उजाला

कर तो लो
कितने ही जतन रोकने के

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