घोर अनय का समय भयावह चुप क्यों हो अमरेन्दर
देख रहे हो बोरे में बच्ची के भ्रूण पड़े हैं
क्रूर कृत्य की आमदनी पर सौ व्यापार खड़े हैं
सोरठी कर्ण बने कि पहले, जागो-जाग मछेन्दर ।
बधिकों का हो, समारोह में, श्लोकों से अभिनन्दन
शील मनुज का जगह-जगह पर रह-रह कर अपमानित
अपने स्वामी से नर-नारी डेग-डेग पर शापित
देवों के सर दिखे नहीं अक्षत, रोली और चन्दन ।
लूटपाट है, घोर मिलावट, अमृत हुआ हलाहल
सौर-परिधि के ग्रह सारे ही ग्रहण ग्रसाये काले
मीरा के अधरों पर अब तो विष के सौ-सौ प्याले
पुर के वासी रंगमहल में रास-रंग में पागल ।
चतुर्मास है, सोया है भारत का भाग्यविधाता
वाणी से जोड़े ही रखना अमरेन्दर तुम नाता ।