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चन्दन / सुरेन्द्र स्निग्ध

फेंकिए हुज़ूर ! फेंकिए न माई-बाप !
फेंकिए थूक और खखार
जरा ध्यान रखिएगा
फर्श पर नहीं फेंकिएगा
गन्दे हो जाएँगे आपके थूक और खखार,

पता नहीं
टाइल्स आजकल रद्दी आने लगे हैं,

फेंकिए, मैंने फैला दिए हैं
अपने दोनों हाथ
एन्टिसेप्टिक पेपर से पोछे हुए हैं ये हाथ

आपके थूक और खखार को
कुछ नहीं होगा

नीचे बैठी है
दर्शनार्थियों की भीड़
चन्दन करेंगे इससे —
व्यर्थ की इधर-उधर मत
फेंकिए हुज़ूर !