कोई कहता था सोच तब की मनोव्यथा तू
जग सपना था समझेगा जब मन में।
आँखें हैं खुली तो खोल कान भी अजान यह
सभा बन जायगी कहानी एक छन में॥
ऐसा हुआ एक दिन आँखें बंद पाके मेरे
प्राणनाथ आ गए अचानक भवन में।
एक ही झलक में पलक कुछ ऐसी खुली
हो गया कहानी मैं ही अपने नयन में॥