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चरैवेति / त्रिलोचन

उड़ चल; उड़ चल; मेरे पंछी, तेरा दूर बसेरा

          दिन उड़ता निज पर फैलाए
          बदल रहा जग बिना बताए
दिन के संग चलाचल, पीछे आता घोर अन्धेरा

          सांस न लेने की बेला है
          प्रलय-पर्व का यह मेला है
फिर, तेरा वह देश, जहाँ पर शेष न साँझ-सवेरा