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चविइंग गम / पूनम सूद

माँ
तुमने यह कौन से संस्कारों का चविइंग गम
मेरे मुँह में डाला था
जब मैं होश संभाल रही थी?
शुरु में था मीठा
फिर फ़ीका
अब है बेस्वाद

आदतन करती हूँ जुगाली
थक चुकी हूँ
मुँह चला के बेवजह मुस्कुरा के
व्यवहार निभा के

पर यह चविइंग गम जहाँ रखो वहीं चिपक जाता
नहीं गले के नीचे उतर पाता
चाहती हूँ थूकना
तुम्हारा ये दुनियादारी का चविइंग गम
कूड़े के ढेर में
या गुब्बारा बना के फोड़़ देना चाहती हूँ फट्ट
दिखावटी समाज के मुँह पर
 
पर न जाने कौन से ऑउट डेटिड
संस्कारों का चविइंग गम है यह
पुराना, लिसलिसा चिपका हुआ
न फूलता है न फूटता
न ही थूका जाता है

माँ तुम्हारे संस्कारों का चविइंग गम