चाँदनी है दूध की धारा।
या कोई एहसास है प्यारा॥
ढूँढ़ता है रोटियाँ नभ में
कोई बेबस भूख का मारा॥
अनबुझी है प्यास अधरों पर
पास है सागर मगर खारा॥
राह में कठिनाइयाँ कितनी
पर मनुज का पुत्र कब हारा॥
जिंदगी है रेत मुट्ठी की
प्राण पंछी देह की कारा॥