दीवार के पीछे भी
तुझे
प्यार करना न आया –
बत्ती बुझाकर
आज भी
वही चादर अँधेरे की ओढ़ ली
शिट्ट !
कब तक बनी रहोगी
’इण्डियन’…?
दीवार के पीछे भी
तुझे
प्यार करना न आया –
बत्ती बुझाकर
आज भी
वही चादर अँधेरे की ओढ़ ली
शिट्ट !
कब तक बनी रहोगी
’इण्डियन’…?