बडेरां री बात मान
मिनखा जूण संवारण सारू
किसनियै भण्या
फगत चार आखर.
‘क’ सूं कबूतर
‘ख’ सूं खरगोश
‘ग’ सूं गधो
‘ङ’ खाली.
चार आखरां री जोत
किसनियै रै अन्तस घट
इण ढाळै उतरी
कै ‘ज्ञ’ ज्ञानी पढयां बिना ई
बो हुग्यो ब्रहमज्ञानी !
पण आज घड़ी
बो ब्रहमज्ञानी
आफळां सूं डरतो
‘कबूतर’ दांई आंख्यां मिंचै
जी लुकोंवतो फिरै
‘खरगोसियै’ री दांई
‘गधियै’ ज्यंू ढोवै
जिया जूण नै आखै दिन
पण तोई सिन्झ्या ढळै
बिंरो पेट
‘ङ’ ज्यूं खाली हुवै
छेवट किसी भणाई
करी म्हारै किसनियै ?