पर्यवेक्षण करती आँखें सूर्य किरणों को सिपाही की लाठी में कर देती है तब्दील.
और शाम में: नीचे के कमरे में सजी महफ़िल की चहल पहल
ज़मीन को भेदती हुई उग आती है कृत्रिम फूलों की तरह.
समतल को करता पार. अन्धकार. बोगी एक स्थल पर अटकी हुई होती है प्रतीत.
एक विरोधी पक्षी करता है चीत्कार, तारों से जड़ी शून्यता में.
विवर्ण सूर्य खड़ा रहता है डूबते उतराते गहरे समुद्रों पर.
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टरटराते पर्णों से युक्त निर्मूल पेड़ जैसे एक आदमी
और तडित के अभिवादन ने देखा अविवेचित निर्दयता की महक वाले
सूरज को उगते हुए फड़फड़ाते पंखों के बीच से दुनिया के डोलते द्वीप पर
हिलकोरें मारती, झाग की पताकाओं के पीछे, पूरी रात
और सारा दिन, सफ़ेद समुद्री पक्षी चीखते चिल्लाते हैं
जहाज़ के पटाव पर और सब हैं दुर्व्यवस्था की ओर ले जाने वाली टिकटों के साथ.
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आपको ज़रुरत है केवल अपनी आँखों को बंद करने की, सुनने के लिए-
सामुद्रिक चिड़िया के धीमी गति वाले इतवार को, समुद्र की अंतहीन पल्ली के ऊपर से.
एक गिटार स्पंदित होना शुरू होता है झुरमुट में, मेघ विलम्ब से होता है स्थानांतरित
आलस्य के साथ, जैसे कि विलम्ब से आये बसंत की हरी बेपहियों की गाड़ी
---किरणपुंज में हिनहिनाते प्रकाश के साथ---
फिसलती हुई आती है बर्फ पर.
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सपने में अपनी संगिनी के ऊंची एड़ी वाले जूतों की खट खट से, जगा मैं
और, बाहर, एक जोड़ी बर्फ के टीले जैसे कि हो सर्दियों के परित्यक्त दस्ताने
जबकि सूरज के पर्चे प्रपात की तरह गिर रहे थे शहर पर.
रास्ता कभी ख़त्म नहीं होता. क्षितिज आगे की ओर दौड़ लगाता है.
पंछी पेड़ पर संघर्षशील रहते हैं. धूल पहियों के चारों ओर चक्कर लगाती है.
कि सभी घूमते पहिये करते हैं मौत का प्रतिवाद!
(मूल स्वीडिश से अनुवाद : अनुपमा पाठक)