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चाह / मणिका दास

तुम नदी बनकर बह जाना मेरे सीने में
बहाते हुए दुःख की कुटिया को

तुम एक पंछी बनो प्रेम गीत गाओ
छिपाकर रखूँगी तुम्हें दुनिया की नज़रों से
अपने सीने की खोह में

तुम आसमान बनो
वसुमती बनकर मैं पीऊँगी
तुम्हारे सीने की बारिश
तुम क्या बनोगे
चाँद
सूरज
तारा
मेरी ख़ातिर जो भी बनोगे तुम
चिरदिन-चिरकाल रखूँगी खोलकर
तुम्हारे लिए सीने का दरवाज़ा

मूल असमिया से अनुवाद : दिनकर कुमार