चाह
भाग जाऊं
भागकर कहां जाऊं
लौटकर आना है
यहीं इसी नरक में
जीवन बिताना है
यहीं इसी नरक में
बार-बार होती है चाह
क्या यहां से निकलने की
नहीं है कोई राह
1986
चाह
भाग जाऊं
भागकर कहां जाऊं
लौटकर आना है
यहीं इसी नरक में
जीवन बिताना है
यहीं इसी नरक में
बार-बार होती है चाह
क्या यहां से निकलने की
नहीं है कोई राह
1986