बिजळी रै
खंभै माथै
चिडक़ली
घास फूस भेळा कर’र
बणायौ आपरौ आलणौ
रूंख निरखै
मुळकै अर सोचै
कै चिडक़ली
बावळी हुयगी दीसै
पण
अेक दिन
कटतो-बढतौ
अर आंसू टळकांवतौ रूंख
निरखै हो
चिडक़ली रै बचियां नै
जिका
भरै हा उडारी
आभै में
च्यारू चफेर।