Last modified on 7 फ़रवरी 2009, at 08:34

चिड़िया-1 / स्वप्निल श्रीवास्तव


चिड़िया जल पर नहीं घोंसले की नींव पर बैठी थी

हवा तेज़ थी कि वृक्ष तक सकते में आ गए थे


चिड़िया अपने घोंसले में बच्चों को

बाज और चील से बचाती रही

रात-बिरात धूप और पानी में

वह अपने मोर्चे पर थी


आसमान के सन्नाटे को चीरती हुई वह बढ़ती रही

पंखों से नापती रही दूरियाँ तालाब के किनारे उतर कर

चोंच में बच्चों के लिए लाती रही दाना-पानी

बच्चों को बड़ा करती रही

बच्चे चीं-चीं करके उसे अपने नन्हें पंखों से ढँकते रहे


चिड़िया बच्चों को अपने अनुभव सिखाती रही

पेड़ और उड़ान के अनुभव जो

धरती आसमान के बीच घोंसले की शुरूआत होते हैं