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मदिरा
आज मदिरा पीने को निकला
घर से एक पीने वाला
वोहो तो ढूंढ रहा है मदिरा
गली गली और चौपला
उस ने पुछा मुझ योगी से
कहा मेलेगा मुझ को हाला
मै भी बोला उस जोगी से
क्यों ढूंढ रहा है तू हाला
व्हओ बोला अब मुझ से
मांग रहा मेरा मन प्याला
उस मन की प्यास भुझाने को
ढूंढ़ रहा हूँ मै हाला
उस मन को बार बार दर्पण में दिकथा है एक मदिरा का प्याला
उस मदिरा में घुल मिलने को
वंचित होता मन मेरा
मदिरा की अब रहा में दिक्था
मुझको अपना जीवन सारा
उस जीवन को पास बुलाने
को ढूंढ रहा हूँ मै हाला
अब तू मुझ को हाला देदे
या पहुचा दे मधुशाला
क्यों ले रहा तू परीक्षा
मुझ को पिने मे हाला
हाला मेरा जीवन अमृत
और मृतु हाले का प्याला
पीने दे तू मुझ को अमृत
और पिने दे मुझ को हाला
अब उस जोगी की बाते सुनकर
हाले को मन में रख कर
" याद आ गए मुझ को बच्चन और अब मै बोला उस जोगी से"
रहा पकड़ तू एक चला चल
पा जयेगा मधुशाला
आशुतोष शर्मा
9997060956
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सद्य | 09:51, 27 अगस्त 2010 | 160 × 31 (7 KB) | Firstbot (चर्चा | योगदान) |
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