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चिन्ता / रामधारी सिंह "दिनकर"

सोचना है मूल सारी वेदना का,
छोड़ दो चिन्ता, बड़े सुख से जियोगे।
शान्ति का उत्संग तब होगा सुलभ, जब
मानसिक निस्तब्धता का रस पियोगे।