सवैया
एक समै जमुना-जल मैं सब मज्जन हेत धसीं ब्रज-गोरी।
त्यौं रसखानि गयौ मनमोहन लै कर चीर कदंब की छोरी।।
न्हाइ जबै निकसी बनिता चहुँ ओर चितै चित रोष करो री।
हार हियें भरि भावन सों पट दीने लला बचनामृत धोरी।।124।।
सवैया
एक समै जमुना-जल मैं सब मज्जन हेत धसीं ब्रज-गोरी।
त्यौं रसखानि गयौ मनमोहन लै कर चीर कदंब की छोरी।।
न्हाइ जबै निकसी बनिता चहुँ ओर चितै चित रोष करो री।
हार हियें भरि भावन सों पट दीने लला बचनामृत धोरी।।124।।