Last modified on 16 जून 2017, at 21:29

चुनिंदा शेर / उम्मीद अमेठवी

(1)
खुश वह दिन कि हुस्ने यार से जब अक्ल खीराः थी
यह सब महरूमियां हैं आज हम जितना समझते हैं
(2)
यहाँ कोताहिये जौके अमल है खुद गिरफ्तारी
जहाँ बाजु सिमटते हैं वहीँ सय्याद होता है
(3)
न सुलूक शहबर से न फरेब राहजन से
जहाँ मुतमईन हुआ है वही लूट गया राही
(4)
दिलम हरचंद मी गोयद
चुनीं बाशद चुनां बाशद
बले तक़दीर मी गोयद
न इं बाशद ,न आं बाशद
(5)
किसे पता कि उम्मीदों के रेत में हमने
न जाने कितने घरौंदे बना के तोड़े हैं
(6)
चाहते हैं कब निशाँ अपना वो मिस्ले नक़्शे पा
जो कि मिट जाने को बैठे हैं फ़ना की राह पर
(7)
रोई शबनम गुल हंसा गुंचा खिला मेरे लिये
जिससे जो कुछ हो सका उसने किया मेरे लिये
(8)
कुछ अब के अजब हसरते-दीदार है वरना।
क्या गुल नहीं देखे, कि गुलिस्तां नहीं देखा?