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चुप / शशि सहगल

आज बरसों बाद
दिल फिर से चाहता है
तुम्हारा हाथ थामें
इण्डिया गेट के लॉन में घूमूं
बहुत देर तक, रात होने तक
अंधेरे में पेड़ के नीचे खड़े रहें हम
सुनहरे, सपनीले भविष्य में खायें।
और पतझर का मौसम
बदल जाये अंधेरे के मौसम में
हमें लगे
अंधेरा पत्ती झर रहा है
हम कुछ न पूछें, न जानें
आज़ाद रखें खुद को
और जैसा जी चाहे जी ले
वक्त में से
बटोर ले उन मोतियों को
उस गोताखोर की तरह
जो समुद्र में चुपचाप
गहरे और गहरे
उतरता जाता है।