Last modified on 12 अगस्त 2014, at 18:30

छंद अक्षर / मुंशी रहमान खान

ईश्‍वर जगदीश है दोष से छत्तीस है,
दासन का शीश है दीना निधान है।
दुष्‍ट का संहार है अहंकार छार है,
सेवक उद्धार है करुणा निधान है।
क्रोधी को काल है निंदक को जाल है,
ज्ञानी को ढाल है दानी को दान है।
सच्‍चा जो दास है जग से निराश है,
ईश्‍वर की आश है स्‍वर्गहिं ठिकान है।
दोहा अधर-निराकार करतार इक जिन यह रचा जहाँन।
नहीं जना उसे काहु ने नहीं नारि संतान।।