नाम को जिन में भलाई है नहीं।
बन सकेंगे वे भले कैसे बके।
कह सकेंगे हम नरम कैसे उसे।
जो नरम छाती न नरमी रख सके।
जो रही चूर रँगरलियों में।
जो सदा थी उमंग में माती।
आज भरपूर चोट खा खा कर।
हो गई चूर चूर वह छाती।
नाम को जिन में भलाई है नहीं।
बन सकेंगे वे भले कैसे बके।
कह सकेंगे हम नरम कैसे उसे।
जो नरम छाती न नरमी रख सके।
जो रही चूर रँगरलियों में।
जो सदा थी उमंग में माती।
आज भरपूर चोट खा खा कर।
हो गई चूर चूर वह छाती।