तट कहता तटनी से--’देखो तनिक ठहर जाओ जो पल भर’
एक बार बस तुम्हें प्यार से ले लूँ अपने आलिंगन में भर!
पर तट जितना उसे घेरता, गति उतनी ही तीव्र नदी की,
पग पग पर रोका, आख़िर वह छिपी जलधि में और न दीखी!
यही हाल मेरा भी, चाहा--सुख को लूँ मैं चूम एक पल,
पर सुख मुझको छोड़ अकेला कह जाता--’मैं तो छायाछल!’