आँख मींच लो
अभी न सोचो
सोचेंगे कल
करने से क्या
हुआ कभी कुछ
पड़े रहे जब
तले वृक्ष के
पूरा दिन ही-
हाथों में थे मोती उजले
शाम ढले जब
मुट्ठी खोली
कभी दौड़ते रहे
सड़क पे
लेकर छेनी और कुदाली
खोद-खोद दिन गए
दिनोंदिन
हाथों थे, हाथों के छाले
खाली