छिलके के भीतर छिलके के
भीतर छिलका।
क्रम अविच्छिन्न।
तो क्या?
यह कैसे है सिद्ध
कि भीतरतम है, होगा ही,
बाहर से भिन्न?
मैं अनन्य एकाएक
जैसे प्यार।
नयी दिल्ली, नवम्बर, 1968
छिलके के भीतर छिलके के
भीतर छिलका।
क्रम अविच्छिन्न।
तो क्या?
यह कैसे है सिद्ध
कि भीतरतम है, होगा ही,
बाहर से भिन्न?
मैं अनन्य एकाएक
जैसे प्यार।
नयी दिल्ली, नवम्बर, 1968