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छुआ तुमको / कुमार रवींद्र

छुआ तुमको
लगा जैसे धूप को सहला लिया
 
सच!
तुम्हारी देह सूरज की किरण
साँस जैसे
कोई कस्तूरी हिरण
 
तुम्हें देखा
लगा भीतर जल गया कोई दिया
 
साथ तुम हो
नदी होकर हम बहे
खुशबुओं के द्वीप पर
दिन-भर रहे
 
घाट-घाटों
रात-भर जेसे कोई अमरित पिया
 
पेड़ हैं हम
तुम हवा मधुमास की
यह कहानी
फागुनी बू-बास की
 
ख़त्म होगी कल
अभी तो पर्व हमने है जिया