Last modified on 6 अगस्त 2008, at 08:46

जनतंत्र-आस्था / महेन्द्र भटनागर

जनतंत्र के उद्घोष से गुंजित दिशाएँ !


आज जन-जन अंग शासन का,

बढ़ गया है मोल जीवन का,

स्वाधीनता के प्रति समर्पित भावनाएँ !


अब नहीं तम सर उठाएगा,

ज्याति से नभ जगमगाएगा,

उद्देश्य-प्रेरित दृढ़ हमारी धारणाएँ ।


मूक होगी रागिनी दुख की,

मूर्त होगी कामना सुख की,

अब दूर होंगी हर तरह की विषमताएँ !