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जनतन्त्र / प्रताप सहगल

मैं लावारिस हूं
चाहो तो मुझे पीट लो
कहीं भी
सड़क पर/विश्वविद्यालय में/
सदन में/शिवालय में
या किसी गांव की चौपाल पर.
चाहो तो बाँध दो मुझे
किसी दरख्त के साथ
और लगा दो आग.
झोंक दो किसी भी भट्टी में
या फिर फेंक दो मुझे
किसी ऊंची इमारत से.
मैं लावारिस हूं
सड़क के जुलूसों का बेतरतीब शोर
मेरा गला घोंट रहा है
मैं घिघिया रहा हूं/फिसल रहा हूं
फिर भी बन के नारा
बेतहाशा भाग रहा हूं
हाथ पाँव फैलाए हुए
मेरे संरक्षकों! मुझे संभाल हो
मैं लावारिस हूं.