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जनवाणी / महेन्द्र भटनागर


जो जन-जन के भावों और विचारों को वहन करे
वह जनवाणी है !
वह युगवाणी है !

तम का छाया-नर्तन
आतंक भरा शासन
जन-जागृति ज्योति-किरण
करती है निर्वासन,


जो हर अवरोधी सामाजिक ताक़त का दमन करे
वह जनवाणी है !
वह युगवाणी है !

शोषक-वर्ग भुजाएँ
नाशक तेज हवाएँ
मेघों-अस्त्रों से कर
नव-शक्ति प्रहार प्रखर,
जो जन-बल के सम्मुख श्रद्धा आदर से नमन करे
वह जनवाणी है !
वह युगवाणी है !

उठते गिरते हरदम
नंगों भूखों का श्रम,
क्षण भर होकर आहत
पर, पा लेता क़ीमत,


जो सामूहिक पीड़ा, आँसू, क्रन्दन को सहन करे
वह जनवाणी है !
वह युगवाणी है !

सुनकर उठते विप्लव,
बिछ जाते भू पर शव,
उठता ज्वाला भैरव,
गु×िजत कर क्रन्दन-रव,


जो गिरती दीवारों पर नूतन जग का सृजन करे
वह जनवाणी है !
वह युगवाणी है !

वेग रुके जन बल का,
स्वर बनकर हलचल का
छा जाता अम्बर में
धरती पर घर-घर में,


जो दुनिया की शोषित जनता का एकीकरण करे
वह जनवाणी है !
वह युगवाणी है !