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ज़िन्दगी जंग छोटी-सी तो नहीं / देवी नांगरानी

ज़िन्दगी जंग छोटी-सी तो नहीं
सिर्फ जाना है, मैं लड़ी तो नहीं

उससे पहचान है पुरानी-सी
दर्द अपना है अजनबी तो नहीं

इल्म से दिल-दिमाग़ रौशन हैं
इससे बेहतर भी रोशनी तो नहीं

अजनबी को मैं कैसे अपनाऊँ
जान-पहचान भी बनी तो नहीं

हादसों से शिकायतें मत कर
हौसलों की डगर बुरी तो नहीं

अपने ही शहर में है खोई क्यों
राह इतनी भी अजनबी तो नहीं

पार कर के वो तोड़े पुल ‘देवी’
इतना इन्सान मतलबी तो नहीं.