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जाने हमको क्या हुआ आज इतना व्याकुल है मेरा मन / प्रेम नारायण 'पंकिल'


जाने हमको क्या हुआ आज इतना व्याकुल है मेरा मन।
कैसे कह सकती निर्बल वाणी उर का अगम सिन्धु-मन्थन।
सरि-जल-तरंग की गाथा हारी पूछ-पूछ मैं तट-तरु से।
चाहा जानना व्यथा सिकता की दिनकर-किरण-दग्ध मरु से।
मुखरित न हुये वे मौन-व्रती रह गया सिहर बस उनका तन।
अपनी न व्यथा कह पाते नभ के दिवानाथ-हिमकर-उडुगण।
पर चुप न रही अबला, विकला बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥108॥