Last modified on 29 मई 2009, at 18:09

जिजीविषा / रवीन्द्र दास

न रहेगा कोलगेट
और न रहेगा कंप्यूटर
रहेगा सादा पानी ,
मेरी कविता
और मैं...
मैं यानि मेरी इच्छाएं
मैं अक्सर सोचता हूँ
मैं अक्सर चाहता हूँ
मैं...
यानी मेरी दुनिया
अनंत आकाश में
अनंत विचरते हुए मेरे अनंत स्वप्न.