मेरे वे आकाश-से खुले दिन
बह गये हैं
वक्त के साथ-साथ
मर गई है कविता
कहीं अन्दर-ही-अन्दर।
दुनियादारी की बाढ़ में
विवश-सी देख रही हूँ मैं
खुद को
मरते हुए।
मेरे वे आकाश-से खुले दिन
बह गये हैं
वक्त के साथ-साथ
मर गई है कविता
कहीं अन्दर-ही-अन्दर।
दुनियादारी की बाढ़ में
विवश-सी देख रही हूँ मैं
खुद को
मरते हुए।