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जिजीविषा / शिवकुटी लाल वर्मा

तटस्थता झुकाए इस वृक्ष के नीचे
जिजीविषा की एक गड्ढों-भरी सड़क है ‘
जिस पर बिछी हुई
कोलतार सनी नुकीली गिट्टियों पर
एक अदृश्य रोलर चल रहा है

परिचित माहौल की अनास्था
सड़क के एक ओर पड़े धूल भरे मीठे को
घूर रही है
एक बौना
जिसकी घायल रक्त-शिराओं में
पत्तियाँ बज रही हैं
कोलतार-सनी गिट्टियों पर
अदृश्य रोलर के पीछे चलता जा रहा है

हमला
हमला भी क्या लाजवाब चीज़ हो गई है
सम्भोग के लिए
या मौत के लिए
किसी को राज़ी करने का धीरज
रह गया है न तो किसी मर्द में
और न तो किसी मर्दानगी भरे देश में
मानवता को हामिला बनाने के लिए
और रास्ता भी क्या है सिवा हमले के ?

मियादी बुखार से उठी
पथ्य ग्रहण करती
एक देश की जनता सँभालती है हमले का आवेश !
बाँहों में बाँधे अनेक मित्र देश
नायक-खलनायक की भूमिका
निभाता हुआ एक मर्द देश
वे सड़ रही जिनकी ज़िन्दगी
बल्कि सड़न ही बन गई जिनकी ज़िन्दगी ---

कहीं जुड़ गए हैं अपनी मनपसन्द भूमिका के साथ
(एक रुचिकर ज़िन्दगी के लिए
अपनी आँखों को लय कर देने
या हाथों का विक्रय कर देने से बड़ा मूल्य
और क्या हो सकता है)
यह उत्तेजक परिवेश !
ओज भरा देश
अपने पुंसत्व के प्रति विश्वास से भर गया है
इतने शक्तिशाली वीर्य का परीक्षण !

हामिला तो होगी ही मानवता !
(जन्मेंगे रक्त भरे झण्डे फिर एक बार !)
निर्वसना होने का भय कब का मर चुका है !