Last modified on 25 अप्रैल 2011, at 14:24

जिजीविषा / शैलप्रिया

लहर
पुनः आओ
मेरे मन को गढ़ो
सतरंगे इंद्रधनुष-सा
अनचाहे
थाम तुम्हें
पकड़ भर लूँ

उफ़नती नदी
कई रंगों से भर
मेरे शुष्क होठों पर
तिरती है
एक ख़ुशी की लहर