लहर
पुनः आओ
मेरे मन को गढ़ो
सतरंगे इंद्रधनुष-सा
अनचाहे
थाम तुम्हें
पकड़ भर लूँ
उफ़नती नदी
कई रंगों से भर
मेरे शुष्क होठों पर
तिरती है
एक ख़ुशी की लहर
लहर
पुनः आओ
मेरे मन को गढ़ो
सतरंगे इंद्रधनुष-सा
अनचाहे
थाम तुम्हें
पकड़ भर लूँ
उफ़नती नदी
कई रंगों से भर
मेरे शुष्क होठों पर
तिरती है
एक ख़ुशी की लहर