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जितिया / पतझड़ / श्रीउमेश

हमरा गाछ तर बैठी केॅ बुड़िया दादी झक्खै छै।
”काल्हे छेकै जितिया, खज्जी आनी को नै रक्खै छै॥
गुरुत्मान जीमूतवाहनें के पूजा करबे करत।
पितर अरू-पितरैनी के तेॅ ध्यान सभै धरबे करतै॥
हथिया पेटोॅ के जितिया कहलाबै ‘खरोॅ’ बडोॅ जितिया।
लाठी लगली बुढ़ियौं करतो सबसे बड़ोॅ खरोॅ जितिया॥
झिंगली फुलैला पर करतै परबैतीं रे अबको पारनोॅ।
एक बूंद पानी नै पीती अबकी छै एन्हें धारनोॅ॥
आजो याद करै छी ऊ दिन, छाती फाटी आबै छेॅ।
लोरो कौनें पोछै छेॅ, कौनें हमरा समझावै छेॅ?