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जीवन / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

कोई कहता-
जीवन है फूलों की तरह
खिलता है, मुरझाता है
झड़ जाता है।
कोई कहता है-
जीवन है बच्चों की तरह
गिरता है, उठ जाता है
रोता है, फिर हँसता है।
कोई कहता है-
जीवन है मेघों की तरह
झरता है, सुख पाता है।
कोई कहता है-
जीवन है सूरज की तरह
प्रीत में जलता है, अपनी सजनी से मिलने को
विरह् पंथ पर चलता है, तपता है।
कोई कहता -
जीवन तो है सरिता की तरह
मस्ती में गाता है,
संगीत उड़ाता है
फिर सागर में मिलकर, वह मृत्यु को सुखद बनाता है।
पर मेरी नजरों में
यह जीवन तो, केवल समझौता है
बस समझौता है।
एक पल चूके तो जीवन बस एक सरोता है।