Last modified on 26 अगस्त 2008, at 10:28

जीवन / कीर्ति चौधरी

एक जीवन मिला था

उसे जिया नहीं

वह अमृत-घट था

उसे पिया नहीं


भरमते रहे

प्यासे और निरीह

उस झरने की खोज में

जो अंदर था

बंद और ठहरा हुआ

उसे अपने को दिया नहीं


मांगते रहे प्यार और आश्वासन

कृपण हो गए हैं लोग

दुहराते रहे बार-बार

खुद को कुछ दिया नहीं

खोजते रहे अलंकरण

सजाने के

उन सपनों को--जो दिखे नहीं।


बीत गई उमर

और एक अदद जीवन

यों ही बिना जिए

अंदर से भरा

और ऊपर से रिक्त ।